वांछित मन्त्र चुनें

ता वा॑मिया॒नोऽव॑से॒ पूर्वा॒ उप॑ ब्रुवे॒ सचा॑। स्वश्वा॑सः॒ सु चे॒तुना॒ वाजाँ॑ अ॒भि प्र दा॒वने॑ ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tā vām iyāno vase pūrvā upa bruve sacā | svaśvāsaḥ su cetunā vājām̐ abhi pra dāvane ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ता। वा॒म्। इ॒या॒नः। अव॑से। पूर्वौ॑। उप॑। ब्रु॒वे॒। सचा॑। सु॒ऽअश्वा॑सः। सु। चे॒तुना॑। वाजा॑न्। अ॒भि। प्र। दा॒वने॑ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:65» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:3» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:3


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे प्राण और उदान के समान वर्तमानो ! (स्वश्वासः) अच्छे घोड़े जिनके ये (सु, चेतुना) उत्तम ज्ञानवान् के साथ (दावने) देनेवाले के लिये (वाजान्) संग्रामों के (अभि, प्र) सम्मुख अच्छे प्रकार कहें उनको मैं (उप, ब्रुवे) समीप में कहूँ। हे अध्यापक और उपदेशक जनो ! जिन (पूर्वौ) प्रथम विद्या पढ़े हुए (वाम्) आप दोनों को (इयानः) प्राप्त होता हुआ (अवसे) रक्षा आदि के लिये वर्त्तमान हूँ (ता) उन (सचा) मिले हुओं के मैं समीप में कहता हूँ ॥३॥
भावार्थभाषाः - जैसे उपदेशक जन उपदेश देवें, वैसे ही जिनको उपदेश दिया जाये वे औरों को भी उपदेश करें ॥३॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मित्रावरुणौ ! स्वश्वासः सु चेतुना दावने वाजानभि प्र ब्रूयुस्तानहमुप ब्रुवे। हे अध्यापकोपदेशकौ ! यौ पूर्वौ वामियानोऽवसे वर्त्ते ता सचाऽहमुपब्रुवे ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ता) तौ (वाम्) युवाम् (इयानः) प्राप्नुवन् (अवसे) रक्षणाद्याय (पूर्वौ) प्रथमाधीतविद्यौ (उप) (ब्रुवे) (सचा) समवेतौ (स्वश्वासः) शोभना अश्वा येषान्ते (सु) सुष्ठु (चेतुना) विज्ञानवता सह (वाजान्) सङ्ग्रामान् (अभि) (प्र) (दावने) दात्रे ॥३॥
भावार्थभाषाः - यथोपदेशका उपदिशेयुस्तथैवोपदेश्या अन्यानप्युपदिशन्तु ॥३॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे उपदेशक उपदेश देतात तसे ज्यांना उपदेश दिला जातो त्यांनी इतरांनाही उपदेश करावा. ॥ ३ ॥